भगवान विश्वकर्मा महापूजा एवं विश्व सृजन दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं... ॐ नमो विश्वकर्मणे..
" परब्रह्म परमपिता परमेश्वर महादेव कौन "
ॐ विराट परब्रह्मणे नम:
आदरणीय मित्रों एवम महानुभावों, सत्य सनातन वैदिक धर्म जो अनादिकाल से इस सृष्टि में विद्यमान है जिसने कितने ही प्रलय और सृजन को देखा और मानव सभ्यता एवम संस्कृति को अपने आँचल में भरण पोषण करके उन्हे नित्य नये रचना एवम निर्माण की प्रेरणा दी। कभी ना कभी हर सनातनी या संसार के सभी धर्मों के मनुष्यों के मन में कुछ प्रश्न तो ज़रूर आता होगा जैसे 1) ये सृष्टि का निर्माण होने के पहले क्या स्थिति थी और इसका निर्माण कैसे हुआ और उस शून्यकाल में भी वो कौन सा परमात्मा विद्यमान था ? 2) क्या ये सत्य है कि सृष्टि निर्माण के समय कोई परमज्योति अर्थात कोई प्रकाश उत्पन्न हुआ जिसको ॐ के अलावा और भी कोई नाम से जाना जाता है और क्या जगत के नाथ अर्थात विश्वनाथ और समस्त ब्रह्मरूपी विश्व को आवृत करने वाला कोई विश्वब्रह्मा सर्वव्यापी भी कोई है ? 3)मनुष्यों के साथ समस्त जीव जगत एवम समस्त ब्रह्मांड का उत्पत्तिकरता परब्रह्म का नाम क्या है और उनके मुख से कौन से पंचऋषि उत्पन्न हुये जिनके सत्कार में ऋषिपंचमी मनाई जाती है? 4)क्या ब्रह्मा , विष्णु और महेश ये त्रिदेव परब्रह्म के ही रुप है अर्थात देवों का देव भी कोई है अर्थात विश्वदेवो और महादेव कौन है ? ब्रह्मा , विष्णु और शिव अपने आपको किसका रुप बता रहे है ? 5)क्या इन त्रिदेवो और समस्त जीव जगत के साथ मानव जगत का भी कोई पिता है जिसे हम परमपिता , धाता और विधाता कह सकते है? 6) क्या परमपिता, परब्रह्म, परमेश्वर, परमज्योति, विश्वनाथ, विश्वबह्मा, महादेव एवम विधाता निर्गुण का वेदों और पुराणों में कोई एक प्रसिद्ध नाम है जिसे हम एक नाम द्वारा पुकार सकते है ? क्या परब्रह्म की स्तुति के लिये कोई मंत्र भी है? 7) वेदों और पुराणों में वर्णित परब्रह्म विराट विश्वकर्मा और देवशिल्पी विश्वकर्मा के बीच लोगों को जो भ्रांतियां होती है इनमें क्या भिन्नता है ?
मित्रों कहते है कि सत्य को प्रमाण देने की कोई आवश्यकता नहीँ होती है परंतु , ये कथन तो वैदिककाल का है जब सतयुग था और अब तो कलयुग चल रहा है और वेदों का क्षरण भी बहुत हो चुका है परंतु , अब भी वैदिक प्रमाण सर्वोच्च ही माने जायेंगे और जो प्रमाण हमारे सनातनी ऋषियों मुनियों ने वेदों से उध्रित एवम अपने तपोबल द्वारा सत्य को जानकर स्मृतियों एवम पुराणों का रुप दिया उसको तो कोई मनुष्य झुठला नहीँ सकता । मै एक एक करके उपरोक्त हर प्रश्नों का उत्तर शास्त्रों से देने का पूरा प्रयास करूँगा और अपने तर्को एवम प्रमाणों से सिद्ध करूँगा कि वेदों और पुराणों के अनुसार परमपिता परब्रह्म परमेश्वर कौन है और उसका सार्वभौमिक वैदिक नाम क्या है जिसको हम सनातनीयो ने भुला दिया है अधिकतर मनुष्यों ने तो अज्ञानवश और कुछ ने तो अपने अहंकार और छलवश सत्य को मिटाने का इस कलयुग में भरपूर प्रयास किया परंतु , मै इस भ्रांति को मिटाने का अपने निम्नस्तर पर प्रयास करूँगा। कुछ सनातनियो को ये सात प्रश्नों के उत्तर सात आश्चर्यों के समान लगेंगे परंतु , जैसे वो आश्चर्य सत्य है वैसे ही शास्त्रों एवम कुछ विद्वानों तथा उनकी पुस्तकों से संकलित किया गया ये शास्त्रीय प्रमाण सत्य सनातन वैदिक धर्म की तरह अटल सत्य है।
सर्वप्रथम पहला प्रश्न ये है ;
1) ये सृष्टि का निर्माण होने के पहले क्या स्थिति थी और इसका निर्माण कैसे हुआ और उस शून्यकाल में भी वो कौन सा परमात्मा विद्यमान था ?
उत्तर -
" न भूमि न जलं चैव न तेजो न च वायव: ।
न चाकाश न चितं च न बुध्दया घ्राण गोचरा ।।
न ब्रह्मा नैव विष्णुश्च न रूद्रो न च देवता ।
एक एक भवे द्विश्वकर्मा विश्वाभि देवता ।। "
- ( विश्वब्रह्म पुराण अध्याय - 2)
अर्थ - न पृथ्वी थी , ना जल था , न अग्नि थी , न वायु था न आकाश था , न मन था , न बुद्धि थी और न घ्राण आदि इंद्रियां भी नहीँ थी। न ब्रह्मा थे , ना विष्णु थे , नाहि शिव थे तथा अन्य कोई देवता नहीँ था, उस सर्व शून्य प्रलय में समस्त ब्रह्मांड को अपने में ही आवृत अर्थात समाये हुये सबका पूज्य केवल एक ही विश्वकर्मा परमेश्वर परब्रह्म विद्यमान थे ।
"यस्माज्जातं न पुराकिँचनैव, य आबभूव भुवनानि विश्वा प्रजापति प्रजया सम रसण, स्त्रिणि ज्योतिं षि सचते स षोडशी ।।"
- (यजुर्वेद अध्याय- 32, मंत्र - 5)
अर्थ - वह ईश्वर अनादि है इसलिये उससे पहले कुछ भी नहीँ था और सब कुछ उसी ने उत्पन्न किया है । वहीं ईश्वर अर्थात प्रजापति (विश्वकर्मा) सब प्रजाओं में व्याप्त सभी जीवों के अच्छे और बुरे कर्म देखता है और कर्मानुसार फल प्रदान करता है । उसी प्रजापति ईश्वर ने प्राण आदिसोलह वस्तुओं का निर्माण किया है। इससे वह षोडशी कहलाता है। ( ये सोलह वस्तुयें निम्न है ; प्राण, श्रद्धा, आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, इंद्रिय, मन, अन्न, वीर्य, तप, मंत्र, कर्म, लोक और नाम है इसका विवरण षोडशकला " प्रश्नोंप्निषद " में है ।)
"अ॒द्भ्यः सम्भू॑तः पृथि॒व्यै रसा॓च्च । वि॒श्वक॑र्मणः॒ सम॑वर्त॒ताधि॑ ।
तस्य॒ त्वष्टा॑ वि॒दध॑द्रू॒पमे॑ति । तत्पुरु॑षस्य॒ विश्व॒माजा॑न॒मग्रे॓ ॥"
- (यजुर्वेद अध्याय - 31, मंत्र - 17)
अर्थ - सृष्टि के प्रारंभ में जल और पृथ्वी का निर्माण करके विराट पुरुष परब्रह्म विश्वकर्मा ने अपने को स्वयं प्रकट किया । विराट विश्वकर्मा ने स्वयं से त्वास्ठा अर्थात ब्रह्मा को उत्पन्न किया। ये समस्त सृष्टि अर्थात सम्पूर्ण ब्रह्मांड के अस्तित्व के पूर्व सब कुछ उन्ही विराट पुरुष विश्वकर्मा में समाहित था और समस्त सृष्टि उन्ही का रुप थी।
ऋग्वेद में एक प्रश्न के माध्यम से सृष्टि के निर्माण से सम्बन्धित बाते पूँछी गई और उसका उत्तर भी दिया गया।
" कि ॐ स्विदा सीद धिष्टान मारम्भणम कतमत स्वित कदासीत ।
यतो भूमिं जनयन विश्वकर्मा विघा मौर्णोन विश्वचक्षा:।। "
- (ऋग्वेद मंडल - 10, सूक्त - 81, मंत्र - 2)
अर्थ - वह स्थान कौन सा था ? बनाने की वह सामग्री कौन सी थी ? वह कैसा स्थान था जहाँ बैठकर और जिस साम्रगी को लेकर सबको देखने वाला सर्वकर्ता विश्वकर्मा प्रभु ने पृथ्वी और सूर्यादि लोकों को उत्पन्न करते हुये अपनी महिमा से सर्वत्र फैलाया है ?
इसके उत्तर में निम्न बाते उसके अगले ही मंत्र में कही गई।
"विश्वतक्षोरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरत विश्वतस्पात।
संवाहुभ्यां धमति सं पतत्रैर्द्यावा भूमि जनयन देव एक:।।"
- (ऋग्वेद मंडल -10, सूक्त - 81 मंत्र - 3)
प्रश्नों का उत्तर इस प्रकार दिया गया कि ..
अर्थ- जगतकर्ता विश्वकर्मा प्रभु के सब जगह आँखे है , सब जगह उनका मुख है ,सब जगह उनकी भुजाएँ है और सब जगह उनके पैर है। सूर्यलोक तथा पृथ्वी लोक को उत्पन्न करता हुआ वह एक देव अर्थात विश्वकर्मा परमेश्वर अपनी भुजाओं और पैरों से हमें सम्यक प्रकार से युक्त कर देता है।
मंत्र के दूसरे प्रश्न का ये उत्तर दिया कि उसके जगत रचने की साम्रगी का नाम प्रकृति है जो पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवम आकाश आदि पंचभूत कहलाते है और इन साम्रगीयो से ही प्रभु विश्वकर्मा ने सृष्टि का निर्माण किया है।
उपरोक्त सभी शास्त्रीय प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि सृष्टि की उत्पत्ति के पहले उस शून्यकाल में सिर्फ़ और सिर्फ़ विश्वकर्मा परमेश्वर ही विद्यमान थे और उन्ही ने सृष्टि में सभी चीजों का निर्माण किया है।
2) क्या ये सत्य है कि सृष्टि निर्माण के समय कोई परमज्योति अर्थात कोई प्रकाश उत्पन्न हुआ जिसको ॐ के अलावा और भी कोई नाम से जाना जाता है और क्या जगत के नाथ अर्थात विश्वनाथ और समस्त ब्रह्मरूपी विश्व को आवृत करने वाला कोई विश्वब्रह्मा सर्वव्यापी भी कोई है ?
उत्तर -
"श्रुति-सूर्यो ज्योतिअग्नि ज्योतीर्श्चन्द्रे च चंद्र नक्षत्रे च ज्योति: ।
विश्वकर्मा सर्व भूतात्मा देवतात्मा परं ज्योतिरिति ।।"
- ( विश्वब्रह्म पुराण अध्याय-3)
अर्थ - सूर्य में, अग्नि में, चंद्रमा में और तारागण अर्थात नक्षत्रों में जो चमक है ये सब उसी विश्वकर्मा परमपिता परब्रह्म का ज्योति का प्रकाश है तथा सर्वभूतात्मक और देवातात्मक होने से वह प्रभु परमज्योति है और वहीँ सबमें व्यापक हो रहा है उसी सर्वव्यापक परमेश्वर को विराट विश्वकर्मा भी कहते है।
विश्वकर्मा ही जगत के नाथ है जिसे विश्वनाथ कहा जाता है और सर्वव्यापी जो समस्त जीवों में व्याप्त सर्वोच्च ब्रह्म विश्वब्रह्मा भी है।
"ॐ विश्वकर्मण्य विद्महे पंच वक्त्राय धीमहि तन्नो विश्वब्रह्मा प्रचोदयात् ।। "
- (श्री महा विश्वकर्मा उपनिषद 1)
अर्थ - इस मंत्र में विश्वब्रह्मा विश्वकर्मा की स्तुति करते हुये कहा गया है कि हम भगवान विश्वकर्मा को जानते हैं, आइए हम उनके पाँच मुखों पर ध्यान केंद्रित करें जो हमें प्रेरणा देते हुये हमें विश्वब्रह्मा रुप का दर्शन कराते है । (विश्वब्रह्म - सार्वभौमिक ब्राह्मण अर्थात ब्रह्म जो सर्वव्यापी हैं।)
उपरोक्त शास्त्रीय प्रमाणों से ये सिद्ध होता है कि ॐ अग्नि और परमज्योती भी भगवान विश्वकर्मा ही है और साथ ही वो ही विश्वनाथ और विश्वब्रह्मा भी है।
3)मनुष्यों के साथ समस्त जीव जगत एवम समस्त ब्रह्मांड का उत्पत्तिकरता परब्रह्म का नाम क्या है और उनके मुख से कौन से पंचऋषि उत्पन्न हुये जिनके सत्कार में ऋषिपंचमी मनाई जाती है?
उत्तर -
"विश्वकर्मा परब्रह्म जगधारमूलक: ।
तन्मुखानी तुवै पंच पंच ब्रह्मेत्युदाह्तम।।"
- (वशिष्ठ पुराण, कांड - 3, अध्याय - 6, मंत्र - 11)
अर्थ - परब्रह्म श्री विश्वकर्मा सम्पूर्ण जगत के मूल आधार है। उनके पाँचों मुखों को पंचब्रह्मा कहते है जिससे पाँच ऋषि उत्पन्न हुये है तथा और संतति बढ़ी एवम परब्रह्म विश्वकर्मा के मुखों से जो पंचऋषि उत्पन्न है वो सभी ब्राह्मण है। (पंचऋषियो में मनु-लौहकार, मय- कास्ठ्कार, त्वास्ठा-ताम्रकार, शिल्पी- शिल्पकार, दैवग्य-स्वर्णकार हुये जो परमपिता परब्रह्म के समान वेद शास्त्रों के साथ ज्ञान,विज्ञान,तंत्र, मंत्र और यंत्र के ज्ञाता थे के इसके माध्यम से सृष्टि के निर्माण को अपने सर्वोच्च आयाम पर स्थापित किया। इन्ही पंच ऋषियों को पंचब्रह्मा भी कहा जाता है और उनके सत्कार में ऋषि पंचमी मनाई जाती है।इन्ही के वंशज विश्वकर्मा वंशी पंचब्रह्मा अर्थात पांच ब्राह्मण या कहे पांचाल ब्राह्मण माने जाते है।)
4) क्या ब्रह्मा , विष्णु और महेश ये त्रिदेव परब्रह्म के ही रुप है अर्थात देवों का देव भी कोई है अर्थात विश्वदेवो और महादेव कौन है ? ब्रह्मा , विष्णु और शिव अपने आपको किसका रुप बता रहे है ?
उत्तर -
" त्वामिद्राग्निभुरसि त्वं गुं: सूर्यो मरीचय: ।
विश्वकर्मा विश्वदेवो महादेवो महान आसि: ।। "
- (सामवेद अध्याय - 33, मंत्र - 22)
अर्थ - हे ब्रह्म ! तू इंद्र है जो अपने सभी शत्रुओं को हरा देता है , तू सर्वोच्च प्रकाश है जो सूर्य को चमकाता है। तू विश्वकर्मा है जो सभी कर्मों का स्वामी है और तू महान परमात्मा है, जो सभी देवताओं से बड़ा है अर्थात विश्वदेव और महादेव है ।
" विश्वकर्मा विश्वदेवो महान आसि:। "
- (ऋग्वेद मंडल-8, अध्याय-10, सूक्त-98, मंत्र-3)
अर्थ - भगवान विश्वकर्मा सृष्टि के समस्त देवों में महान है इसलिये वो विश्वदेवो भी है ।
*ब्रह्मा विश्वकर्मा के ही रुप है ।*
" विश्वकर्मा भवत्पूर्व ब्राह्मण परातनु: ।"
- (स्कंदपुराण काशीखंड अध्याय - 6)
अर्थ - स्कंदपुराण के अनुसार पूर्वकाल में विश्वकर्मा ही ब्रह्मा जी के दूसरे शरीर के रुप में उत्पन्न हुये थे ।
*विश्वकर्मा ही विष्णु है ।*
" विष्णु च विश्वकर्मा च न भिन्नते: परस्परम ।"
- (विष्णु उवाचक)
अर्थ - विष्णु जी कहते है कि हे लक्ष्मी ये जो उत्पत्ति रुप मेरा देख रही है वह विश्वकर्मा का ही रुप है इसमें कोई भिन्नता नहीँ है अर्थात दोनो एक ही है।
*शिव भी विश्वकर्मा से स्वयं से जोड़ते है।*
" माघ शुक्ल पक्षे त्रयोदश्यां दिवा पुण्यौ पुनवर्सु :।
अष्टाविंशति में जायतो, विश्वकर्मा भवानी च।। "
- (स्कंद पुराण अध्याय - 8, मंत्र - 107)
अर्थ - हे पार्वती ये जो मेरा रुप तुम देख रही हो वह अट्ठाईसवा अवतार के रुप में भगवान विश्वकर्मा ने ही अवतार लिया है और हम दोनो एक ही है।
ये सभी उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध होता है कि भगवान विश्वकर्मा ही विश्वदेवो और महादेव है साथ ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश ये त्रिदेव भगवान विश्वकर्मा के ही समरुप है।
5)क्या इन त्रिदेवो और समस्त जीव जगत के साथ साथ मानव जगत का भी कोई पिता है जिसे हम परमपिता और विधाता कह सकते है?
उत्तर -
"या इमा विवा भुवनानि जुह्वद ऋषि होता न्यसीदात पिता नः |
स आशिषा द्रविण मिश्मिः: प्रथमचद वारामाविश ||"
- (ऋग्वेद मंडल -10, सूक्त - 81, मंत्र - 1)
भगवान विश्वकर्मा हमारे पिता हैद्रष्टा है जो सृष्टि के यज्ञ के माध्यम से दुनिया को बनाने की कामना करता था। वह सबसे पहले अपने शुभ वचन (शाश्वत ध्वनि ओम के साथ) और उसकी चेतना की आग के माध्यम से सबसे ज्यादा वांछनीय स्वर्ग (प्रकाश अंतरिक्ष) बनाने के लिए इच्छित थे। वहाँ पहले उन्होंने प्राच्य अंधेरे में चेतना की शुभ अग्नि बनाई, और फिर वह स्वयं अपनी चेतना के साथ इसे दुनिया के सभी विचारों (जो कि उनकी जागरूकता में थे) के साथ सम्मिलित किया और पूरी तरह से इसे अपने में समा लिया ।
"य इमा विश्वा विश्वकर्मा यो न: पिता ।
अन्न्पतेअन्नस्य नो देहि ।। " - 15
- (यजुर्वेद संहिता)
अर्थ - जो इस संसार का निर्माण करनेवाले तथा अत्रादी पदार्थों का स्वामी विश्वकर्मा हमारे पिता है अर्थात परमपिता वह परमात्मा हमें अन्न प्रदान करें।
"विश्वकर्मा विमना आदिह्राया धाता विधाता परमोत संदृक्।
तेषामिष्टनि समिया मदन्ति यत्रा सप्त पर एकमाहुः ।।"
- (ऋग्वेद मंडल -10, सूक्त - 82, मंत्र - 9)
अर्थ - भगवान विश्वकर्मा जिसका समस्त जग को निर्माण करने का कार्य है और जो अनेक प्रकार के विज्ञान से युक्त ,समस्त पदार्थों में व्याप्त ,सबका धारण पोषण करनेवाला एवम रचने वाला, सबको एक समान देखने वाला , सबसे उत्तम जो है और जो परमात्मा अद्वितीय है वैसा कोई और नहीँ है। जिस परमात्मा में सप्त ऋषि अर्थात सात प्राण को प्राप्त होकर इच्छा से जीव आनंद को एवम सुख समृद्धि करने वाले कामों को सिद्ध करता है उसी ब्रह्म अर्थात परब्रह्म परमपिता विधाता विश्वकर्मा की सबको उपासना करनी चाहिये।
ये सभी उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध होता है कि भगवान विश्वकर्मा ही हमारे पिता अर्थात परमपिता है और विधाता भी वहीँ है।
6) क्या परमपिता, परब्रह्म, परमेश्वर, परमज्योति, विश्वनाथ, विश्वबह्मा, महादेव एवम विधाता निर्गुण का वेदों और पुराणों में कोई एक प्रसिद्ध नाम है जिसे हम एक नाम द्वारा पुकार सकते है ? क्या परब्रह्म की स्तुति के लिये कोई मंत्र भी है?
उत्तर - जी हाँ वेदों एवम पुराणों का एवम उपरोक्त सभी प्रमाणों का अवलोकन करें तो परमपिता, परब्रह्म, परमेश्वर,परमज्योति, विश्वदेवो, विश्वब्रह्मा, विश्वनाथ, विधाता और महादेव के लिये एक ही नाम का प्रयोग सभी वैदिक शास्त्रों में कई बार आया है जिसकी हम निर्विरोध रुप से स्तुति कर सकते है उस परमेश्वर का नाम " विश्वकर्मा " है।
विश्वकर्मा नाम ईश्वर के रूप में वेदों में प्रत्यक्ष रुप से 71 बार आया है और अप्रत्यक्ष रुप से अनगिनत बार आया है। विश्वकर्मा ही वेदों में विराट है वे ही वेद पुरुष है वे ही हिरण्यगर्भ और प्रजापति भी है। इन्हें ही वैदिक मंत्रों में "वेदहम एतं पुरुषम महानतम " बताया गया है । पुराणों में भी अनगिनत बार इन्ही विश्वकर्मा परमात्मा का नाम आया है। चाहे वो विष्णु पुराण हो , ब्रह्मा पुराण हो या शिव महापुराण हो। इन्ही त्रिदेवो के त्रिगुणात्मक रुप को ही विश्वनाथ अर्थात विश्वकर्मा कहते है।
विश्वकर्मा " शब्द की अगर व्याख्या करें तो वैदिक शास्त्रों में निम्न व्याख्या आती है ;
" यो विश्वं जगतं करोत्येसे स विश्वकर्मा "
अर्थ - जो समस्त संसार की रचना अर्थात निर्माण करता है ऐसे परमेश्वर को विश्वकर्मा कहते है।
परब्रह्म विश्वकर्मा के लिये वेदों में एक अष्टाक्षरि एक मंत्र आया है उसका नाम " ॐ नमो विश्वकर्मणे " है । वैदिक परब्रह्म की स्तुति के लिये वैदिक काल से गायत्री मंत्र जो हम सनातन वैदिक हिंदू धर्म के लोग जप करते आ रहे है उसका पूर्ण नाम " विश्वकर्मा गायत्री मंत्र " है जो पौराणिक कालों के आने के बाद और वैदिक ग्रंथों की उपेक्षा के चलते इसके मूल अधिष्ठान देवता जो विश्वकर्मा परब्रह्म है जिससे हम इस मंत्र के माध्यम से विश्वकर्मा के विशेषण के रुप में सूर्य को अंधकार दुर कर सत्य का मार्ग दिखाने के लिये प्रार्थना कर रहे है। यह मंत्र गायत्री छंद से लिया गया है परंतु इसके अधिष्ठान देवता विश्वकर्मा परब्रह्म है। जैसे कोई भी मंत्र सिर्फ गायत्री मंत्र नहीँ है बल्कि गायत्री छंद से लिये जाने के कारण इनके नामों में गायत्री भी जोड़ा जाता है जैसे रुद्र गायत्री , ब्रह्म गायत्री , दुर्गा गायत्री आदि । वैसे ही गायत्री मंत्र "ॐ भूर्भुवः स्वः ..." जो है उसके बारे में शास्त्रों में कहा गया है की " आदित्य अंतर्गते सावित्रीमन्डलमध्ये श्री विश्वकर्मा परमेश्वर: .. " अर्थात - आदित्य यानी सूर्य अन्तर्गत सावित्री मंडल ( गायत्री मंडल ) के मध्य में व्याप्त परब्रह्म परमेश्वर विश्वकर्मा ही है। जिसकी स्तुति ये मंत्र करता है जिसका मूल नाम " विश्वकर्मा गायत्री मंत्र " है ।
7)वेदों और पुराणों में वर्णित परब्रह्म विराट विश्वकर्मा और देवशिल्पी विश्वकर्मा के बीच लोगों को जो भ्रांतियां होती है इनमें क्या भिन्नता है ?
उत्तर - मित्रों एवम महानुभावों, उपरोक्त सभी प्रमाणों के माध्यम से ये सिद्ध कर दिया गया है कि वैदिक परब्रह्म विराट विश्वकर्मा है और उनके ही निर्माण के कार्यों को करने के कारण अनेक ऋषियो को विश्वकर्मा उपाधि मिली । जैसे - ब्रह्मर्षि अंगिरा विश्वकर्मा , ब्रह्मर्षि भुवन विश्वकर्मा , देवगुरु बृहस्पति विश्वकर्मा , देवपुरोहित विश्वरुप विश्वकर्मा वैसे ही एक देवों के शिल्पी है जिन्हें देवशिल्पी विश्वकर्मा कहते है। इन्होने अनेकों अनेकों निर्माण किये है इसलिये ये परब्रह्म विश्वकर्मा के समरुप ही माने जाते है। पौराणिक ग्रंथों में इनके अनेकों निर्माणों कि व्याख्या है जैसे कृष्ण की द्वारिकापूरी , रावण की लंकापूरी , इन्द्र के लिये इन्द्रपुरी , जगन्नाथपुरी , पांडवों के लिये इन्द्रप्रस्थ , सुदामा का महल , कुबेर के लिये स्वर्णिम लंका आदि बहुत से भवनों एवम महलों का इन्होने अद्भुत वैदिक शिल्पकला के माध्यम से निर्माण किया है। इनकी महिमा का गुणगान हर मनुष्यों के साथ साथ देवता लोग सतयुग से लेकर कलयुग में भी गाया जाता है।
उपरोक्त सभी प्रमाणों से ये सिद्ध हो गया है कि परब्रह्म विश्वकर्मा और देवशिल्पी विश्वकर्मा में भिन्नता है अर्थात दोनो का एक ही कर्म होने के कारण विश्वकर्मा है परंतु , एक देवशिल्पी विश्वकर्मा है और एक परब्रह्म विश्वकर्मा है जो सर्वव्यापी परमात्मा है जिनके एक संकल्पमात्र से सृष्टि का सृजन एवम प्रलय होता है। इन्ही ब्रह्म का गुणगान जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने करते हुये कहा था "ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या " अर्थात ब्रह्म या परब्रह्म ही सत्य है और समस्त चराचर जगत मिथ्या अर्थात माया है। परब्रह्म विश्वकर्मा किसी एक जाती के देवता नहीँ है अपितु , वे समस्त मनुष्यजाती , देवतागण एवम समस्त जीवजगत के साथ साथ सर्व ब्रह्माण्ड के परमेश्वर है। इसलिये हे मनुष्यों अपना अहंकार त्यागकर और वैदिक प्रमाणों को साक्षी मानकर सभी देवों के पूजन के पूर्व एक ही परब्रह्म परमेश्वर का पूजन करिये जो सभी जीवों के साथ साथ सृष्टि के कण कण में व्याप्त है जिसका सार्वभौमिक वैदिक और पौराणिक नाम " विश्वकर्मा " है।
ॐ नमो विश्वकर्मणे ..
ॐ विराट विश्वकर्मा परब्रह्मणे नम..
संकलनकर्ता एवम लेखकर्ता - संतोष आचार्य (विश्वकर्मा)
" परब्रह्म परमपिता परमेश्वर महादेव कौन "
ॐ विराट परब्रह्मणे नम:
आदरणीय मित्रों एवम महानुभावों, सत्य सनातन वैदिक धर्म जो अनादिकाल से इस सृष्टि में विद्यमान है जिसने कितने ही प्रलय और सृजन को देखा और मानव सभ्यता एवम संस्कृति को अपने आँचल में भरण पोषण करके उन्हे नित्य नये रचना एवम निर्माण की प्रेरणा दी। कभी ना कभी हर सनातनी या संसार के सभी धर्मों के मनुष्यों के मन में कुछ प्रश्न तो ज़रूर आता होगा जैसे 1) ये सृष्टि का निर्माण होने के पहले क्या स्थिति थी और इसका निर्माण कैसे हुआ और उस शून्यकाल में भी वो कौन सा परमात्मा विद्यमान था ? 2) क्या ये सत्य है कि सृष्टि निर्माण के समय कोई परमज्योति अर्थात कोई प्रकाश उत्पन्न हुआ जिसको ॐ के अलावा और भी कोई नाम से जाना जाता है और क्या जगत के नाथ अर्थात विश्वनाथ और समस्त ब्रह्मरूपी विश्व को आवृत करने वाला कोई विश्वब्रह्मा सर्वव्यापी भी कोई है ? 3)मनुष्यों के साथ समस्त जीव जगत एवम समस्त ब्रह्मांड का उत्पत्तिकरता परब्रह्म का नाम क्या है और उनके मुख से कौन से पंचऋषि उत्पन्न हुये जिनके सत्कार में ऋषिपंचमी मनाई जाती है? 4)क्या ब्रह्मा , विष्णु और महेश ये त्रिदेव परब्रह्म के ही रुप है अर्थात देवों का देव भी कोई है अर्थात विश्वदेवो और महादेव कौन है ? ब्रह्मा , विष्णु और शिव अपने आपको किसका रुप बता रहे है ? 5)क्या इन त्रिदेवो और समस्त जीव जगत के साथ मानव जगत का भी कोई पिता है जिसे हम परमपिता , धाता और विधाता कह सकते है? 6) क्या परमपिता, परब्रह्म, परमेश्वर, परमज्योति, विश्वनाथ, विश्वबह्मा, महादेव एवम विधाता निर्गुण का वेदों और पुराणों में कोई एक प्रसिद्ध नाम है जिसे हम एक नाम द्वारा पुकार सकते है ? क्या परब्रह्म की स्तुति के लिये कोई मंत्र भी है? 7) वेदों और पुराणों में वर्णित परब्रह्म विराट विश्वकर्मा और देवशिल्पी विश्वकर्मा के बीच लोगों को जो भ्रांतियां होती है इनमें क्या भिन्नता है ?
मित्रों कहते है कि सत्य को प्रमाण देने की कोई आवश्यकता नहीँ होती है परंतु , ये कथन तो वैदिककाल का है जब सतयुग था और अब तो कलयुग चल रहा है और वेदों का क्षरण भी बहुत हो चुका है परंतु , अब भी वैदिक प्रमाण सर्वोच्च ही माने जायेंगे और जो प्रमाण हमारे सनातनी ऋषियों मुनियों ने वेदों से उध्रित एवम अपने तपोबल द्वारा सत्य को जानकर स्मृतियों एवम पुराणों का रुप दिया उसको तो कोई मनुष्य झुठला नहीँ सकता । मै एक एक करके उपरोक्त हर प्रश्नों का उत्तर शास्त्रों से देने का पूरा प्रयास करूँगा और अपने तर्को एवम प्रमाणों से सिद्ध करूँगा कि वेदों और पुराणों के अनुसार परमपिता परब्रह्म परमेश्वर कौन है और उसका सार्वभौमिक वैदिक नाम क्या है जिसको हम सनातनीयो ने भुला दिया है अधिकतर मनुष्यों ने तो अज्ञानवश और कुछ ने तो अपने अहंकार और छलवश सत्य को मिटाने का इस कलयुग में भरपूर प्रयास किया परंतु , मै इस भ्रांति को मिटाने का अपने निम्नस्तर पर प्रयास करूँगा। कुछ सनातनियो को ये सात प्रश्नों के उत्तर सात आश्चर्यों के समान लगेंगे परंतु , जैसे वो आश्चर्य सत्य है वैसे ही शास्त्रों एवम कुछ विद्वानों तथा उनकी पुस्तकों से संकलित किया गया ये शास्त्रीय प्रमाण सत्य सनातन वैदिक धर्म की तरह अटल सत्य है।
सर्वप्रथम पहला प्रश्न ये है ;
1) ये सृष्टि का निर्माण होने के पहले क्या स्थिति थी और इसका निर्माण कैसे हुआ और उस शून्यकाल में भी वो कौन सा परमात्मा विद्यमान था ?
उत्तर -
" न भूमि न जलं चैव न तेजो न च वायव: ।
न चाकाश न चितं च न बुध्दया घ्राण गोचरा ।।
न ब्रह्मा नैव विष्णुश्च न रूद्रो न च देवता ।
एक एक भवे द्विश्वकर्मा विश्वाभि देवता ।। "
- ( विश्वब्रह्म पुराण अध्याय - 2)
अर्थ - न पृथ्वी थी , ना जल था , न अग्नि थी , न वायु था न आकाश था , न मन था , न बुद्धि थी और न घ्राण आदि इंद्रियां भी नहीँ थी। न ब्रह्मा थे , ना विष्णु थे , नाहि शिव थे तथा अन्य कोई देवता नहीँ था, उस सर्व शून्य प्रलय में समस्त ब्रह्मांड को अपने में ही आवृत अर्थात समाये हुये सबका पूज्य केवल एक ही विश्वकर्मा परमेश्वर परब्रह्म विद्यमान थे ।
"यस्माज्जातं न पुराकिँचनैव, य आबभूव भुवनानि विश्वा प्रजापति प्रजया सम रसण, स्त्रिणि ज्योतिं षि सचते स षोडशी ।।"
- (यजुर्वेद अध्याय- 32, मंत्र - 5)
अर्थ - वह ईश्वर अनादि है इसलिये उससे पहले कुछ भी नहीँ था और सब कुछ उसी ने उत्पन्न किया है । वहीं ईश्वर अर्थात प्रजापति (विश्वकर्मा) सब प्रजाओं में व्याप्त सभी जीवों के अच्छे और बुरे कर्म देखता है और कर्मानुसार फल प्रदान करता है । उसी प्रजापति ईश्वर ने प्राण आदिसोलह वस्तुओं का निर्माण किया है। इससे वह षोडशी कहलाता है। ( ये सोलह वस्तुयें निम्न है ; प्राण, श्रद्धा, आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, इंद्रिय, मन, अन्न, वीर्य, तप, मंत्र, कर्म, लोक और नाम है इसका विवरण षोडशकला " प्रश्नोंप्निषद " में है ।)
"अ॒द्भ्यः सम्भू॑तः पृथि॒व्यै रसा॓च्च । वि॒श्वक॑र्मणः॒ सम॑वर्त॒ताधि॑ ।
तस्य॒ त्वष्टा॑ वि॒दध॑द्रू॒पमे॑ति । तत्पुरु॑षस्य॒ विश्व॒माजा॑न॒मग्रे॓ ॥"
- (यजुर्वेद अध्याय - 31, मंत्र - 17)
अर्थ - सृष्टि के प्रारंभ में जल और पृथ्वी का निर्माण करके विराट पुरुष परब्रह्म विश्वकर्मा ने अपने को स्वयं प्रकट किया । विराट विश्वकर्मा ने स्वयं से त्वास्ठा अर्थात ब्रह्मा को उत्पन्न किया। ये समस्त सृष्टि अर्थात सम्पूर्ण ब्रह्मांड के अस्तित्व के पूर्व सब कुछ उन्ही विराट पुरुष विश्वकर्मा में समाहित था और समस्त सृष्टि उन्ही का रुप थी।
ऋग्वेद में एक प्रश्न के माध्यम से सृष्टि के निर्माण से सम्बन्धित बाते पूँछी गई और उसका उत्तर भी दिया गया।
" कि ॐ स्विदा सीद धिष्टान मारम्भणम कतमत स्वित कदासीत ।
यतो भूमिं जनयन विश्वकर्मा विघा मौर्णोन विश्वचक्षा:।। "
- (ऋग्वेद मंडल - 10, सूक्त - 81, मंत्र - 2)
अर्थ - वह स्थान कौन सा था ? बनाने की वह सामग्री कौन सी थी ? वह कैसा स्थान था जहाँ बैठकर और जिस साम्रगी को लेकर सबको देखने वाला सर्वकर्ता विश्वकर्मा प्रभु ने पृथ्वी और सूर्यादि लोकों को उत्पन्न करते हुये अपनी महिमा से सर्वत्र फैलाया है ?
इसके उत्तर में निम्न बाते उसके अगले ही मंत्र में कही गई।
"विश्वतक्षोरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरत विश्वतस्पात।
संवाहुभ्यां धमति सं पतत्रैर्द्यावा भूमि जनयन देव एक:।।"
- (ऋग्वेद मंडल -10, सूक्त - 81 मंत्र - 3)
प्रश्नों का उत्तर इस प्रकार दिया गया कि ..
अर्थ- जगतकर्ता विश्वकर्मा प्रभु के सब जगह आँखे है , सब जगह उनका मुख है ,सब जगह उनकी भुजाएँ है और सब जगह उनके पैर है। सूर्यलोक तथा पृथ्वी लोक को उत्पन्न करता हुआ वह एक देव अर्थात विश्वकर्मा परमेश्वर अपनी भुजाओं और पैरों से हमें सम्यक प्रकार से युक्त कर देता है।
मंत्र के दूसरे प्रश्न का ये उत्तर दिया कि उसके जगत रचने की साम्रगी का नाम प्रकृति है जो पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवम आकाश आदि पंचभूत कहलाते है और इन साम्रगीयो से ही प्रभु विश्वकर्मा ने सृष्टि का निर्माण किया है।
उपरोक्त सभी शास्त्रीय प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि सृष्टि की उत्पत्ति के पहले उस शून्यकाल में सिर्फ़ और सिर्फ़ विश्वकर्मा परमेश्वर ही विद्यमान थे और उन्ही ने सृष्टि में सभी चीजों का निर्माण किया है।
2) क्या ये सत्य है कि सृष्टि निर्माण के समय कोई परमज्योति अर्थात कोई प्रकाश उत्पन्न हुआ जिसको ॐ के अलावा और भी कोई नाम से जाना जाता है और क्या जगत के नाथ अर्थात विश्वनाथ और समस्त ब्रह्मरूपी विश्व को आवृत करने वाला कोई विश्वब्रह्मा सर्वव्यापी भी कोई है ?
उत्तर -
"श्रुति-सूर्यो ज्योतिअग्नि ज्योतीर्श्चन्द्रे च चंद्र नक्षत्रे च ज्योति: ।
विश्वकर्मा सर्व भूतात्मा देवतात्मा परं ज्योतिरिति ।।"
- ( विश्वब्रह्म पुराण अध्याय-3)
अर्थ - सूर्य में, अग्नि में, चंद्रमा में और तारागण अर्थात नक्षत्रों में जो चमक है ये सब उसी विश्वकर्मा परमपिता परब्रह्म का ज्योति का प्रकाश है तथा सर्वभूतात्मक और देवातात्मक होने से वह प्रभु परमज्योति है और वहीँ सबमें व्यापक हो रहा है उसी सर्वव्यापक परमेश्वर को विराट विश्वकर्मा भी कहते है।
विश्वकर्मा ही जगत के नाथ है जिसे विश्वनाथ कहा जाता है और सर्वव्यापी जो समस्त जीवों में व्याप्त सर्वोच्च ब्रह्म विश्वब्रह्मा भी है।
"ॐ विश्वकर्मण्य विद्महे पंच वक्त्राय धीमहि तन्नो विश्वब्रह्मा प्रचोदयात् ।। "
- (श्री महा विश्वकर्मा उपनिषद 1)
अर्थ - इस मंत्र में विश्वब्रह्मा विश्वकर्मा की स्तुति करते हुये कहा गया है कि हम भगवान विश्वकर्मा को जानते हैं, आइए हम उनके पाँच मुखों पर ध्यान केंद्रित करें जो हमें प्रेरणा देते हुये हमें विश्वब्रह्मा रुप का दर्शन कराते है । (विश्वब्रह्म - सार्वभौमिक ब्राह्मण अर्थात ब्रह्म जो सर्वव्यापी हैं।)
उपरोक्त शास्त्रीय प्रमाणों से ये सिद्ध होता है कि ॐ अग्नि और परमज्योती भी भगवान विश्वकर्मा ही है और साथ ही वो ही विश्वनाथ और विश्वब्रह्मा भी है।
3)मनुष्यों के साथ समस्त जीव जगत एवम समस्त ब्रह्मांड का उत्पत्तिकरता परब्रह्म का नाम क्या है और उनके मुख से कौन से पंचऋषि उत्पन्न हुये जिनके सत्कार में ऋषिपंचमी मनाई जाती है?
उत्तर -
"विश्वकर्मा परब्रह्म जगधारमूलक: ।
तन्मुखानी तुवै पंच पंच ब्रह्मेत्युदाह्तम।।"
- (वशिष्ठ पुराण, कांड - 3, अध्याय - 6, मंत्र - 11)
अर्थ - परब्रह्म श्री विश्वकर्मा सम्पूर्ण जगत के मूल आधार है। उनके पाँचों मुखों को पंचब्रह्मा कहते है जिससे पाँच ऋषि उत्पन्न हुये है तथा और संतति बढ़ी एवम परब्रह्म विश्वकर्मा के मुखों से जो पंचऋषि उत्पन्न है वो सभी ब्राह्मण है। (पंचऋषियो में मनु-लौहकार, मय- कास्ठ्कार, त्वास्ठा-ताम्रकार, शिल्पी- शिल्पकार, दैवग्य-स्वर्णकार हुये जो परमपिता परब्रह्म के समान वेद शास्त्रों के साथ ज्ञान,विज्ञान,तंत्र, मंत्र और यंत्र के ज्ञाता थे के इसके माध्यम से सृष्टि के निर्माण को अपने सर्वोच्च आयाम पर स्थापित किया। इन्ही पंच ऋषियों को पंचब्रह्मा भी कहा जाता है और उनके सत्कार में ऋषि पंचमी मनाई जाती है।इन्ही के वंशज विश्वकर्मा वंशी पंचब्रह्मा अर्थात पांच ब्राह्मण या कहे पांचाल ब्राह्मण माने जाते है।)
4) क्या ब्रह्मा , विष्णु और महेश ये त्रिदेव परब्रह्म के ही रुप है अर्थात देवों का देव भी कोई है अर्थात विश्वदेवो और महादेव कौन है ? ब्रह्मा , विष्णु और शिव अपने आपको किसका रुप बता रहे है ?
उत्तर -
" त्वामिद्राग्निभुरसि त्वं गुं: सूर्यो मरीचय: ।
विश्वकर्मा विश्वदेवो महादेवो महान आसि: ।। "
- (सामवेद अध्याय - 33, मंत्र - 22)
अर्थ - हे ब्रह्म ! तू इंद्र है जो अपने सभी शत्रुओं को हरा देता है , तू सर्वोच्च प्रकाश है जो सूर्य को चमकाता है। तू विश्वकर्मा है जो सभी कर्मों का स्वामी है और तू महान परमात्मा है, जो सभी देवताओं से बड़ा है अर्थात विश्वदेव और महादेव है ।
" विश्वकर्मा विश्वदेवो महान आसि:। "
- (ऋग्वेद मंडल-8, अध्याय-10, सूक्त-98, मंत्र-3)
अर्थ - भगवान विश्वकर्मा सृष्टि के समस्त देवों में महान है इसलिये वो विश्वदेवो भी है ।
*ब्रह्मा विश्वकर्मा के ही रुप है ।*
" विश्वकर्मा भवत्पूर्व ब्राह्मण परातनु: ।"
- (स्कंदपुराण काशीखंड अध्याय - 6)
अर्थ - स्कंदपुराण के अनुसार पूर्वकाल में विश्वकर्मा ही ब्रह्मा जी के दूसरे शरीर के रुप में उत्पन्न हुये थे ।
*विश्वकर्मा ही विष्णु है ।*
" विष्णु च विश्वकर्मा च न भिन्नते: परस्परम ।"
- (विष्णु उवाचक)
अर्थ - विष्णु जी कहते है कि हे लक्ष्मी ये जो उत्पत्ति रुप मेरा देख रही है वह विश्वकर्मा का ही रुप है इसमें कोई भिन्नता नहीँ है अर्थात दोनो एक ही है।
*शिव भी विश्वकर्मा से स्वयं से जोड़ते है।*
" माघ शुक्ल पक्षे त्रयोदश्यां दिवा पुण्यौ पुनवर्सु :।
अष्टाविंशति में जायतो, विश्वकर्मा भवानी च।। "
- (स्कंद पुराण अध्याय - 8, मंत्र - 107)
अर्थ - हे पार्वती ये जो मेरा रुप तुम देख रही हो वह अट्ठाईसवा अवतार के रुप में भगवान विश्वकर्मा ने ही अवतार लिया है और हम दोनो एक ही है।
ये सभी उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध होता है कि भगवान विश्वकर्मा ही विश्वदेवो और महादेव है साथ ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश ये त्रिदेव भगवान विश्वकर्मा के ही समरुप है।
5)क्या इन त्रिदेवो और समस्त जीव जगत के साथ साथ मानव जगत का भी कोई पिता है जिसे हम परमपिता और विधाता कह सकते है?
उत्तर -
"या इमा विवा भुवनानि जुह्वद ऋषि होता न्यसीदात पिता नः |
स आशिषा द्रविण मिश्मिः: प्रथमचद वारामाविश ||"
- (ऋग्वेद मंडल -10, सूक्त - 81, मंत्र - 1)
भगवान विश्वकर्मा हमारे पिता हैद्रष्टा है जो सृष्टि के यज्ञ के माध्यम से दुनिया को बनाने की कामना करता था। वह सबसे पहले अपने शुभ वचन (शाश्वत ध्वनि ओम के साथ) और उसकी चेतना की आग के माध्यम से सबसे ज्यादा वांछनीय स्वर्ग (प्रकाश अंतरिक्ष) बनाने के लिए इच्छित थे। वहाँ पहले उन्होंने प्राच्य अंधेरे में चेतना की शुभ अग्नि बनाई, और फिर वह स्वयं अपनी चेतना के साथ इसे दुनिया के सभी विचारों (जो कि उनकी जागरूकता में थे) के साथ सम्मिलित किया और पूरी तरह से इसे अपने में समा लिया ।
"य इमा विश्वा विश्वकर्मा यो न: पिता ।
अन्न्पतेअन्नस्य नो देहि ।। " - 15
- (यजुर्वेद संहिता)
अर्थ - जो इस संसार का निर्माण करनेवाले तथा अत्रादी पदार्थों का स्वामी विश्वकर्मा हमारे पिता है अर्थात परमपिता वह परमात्मा हमें अन्न प्रदान करें।
"विश्वकर्मा विमना आदिह्राया धाता विधाता परमोत संदृक्।
तेषामिष्टनि समिया मदन्ति यत्रा सप्त पर एकमाहुः ।।"
- (ऋग्वेद मंडल -10, सूक्त - 82, मंत्र - 9)
अर्थ - भगवान विश्वकर्मा जिसका समस्त जग को निर्माण करने का कार्य है और जो अनेक प्रकार के विज्ञान से युक्त ,समस्त पदार्थों में व्याप्त ,सबका धारण पोषण करनेवाला एवम रचने वाला, सबको एक समान देखने वाला , सबसे उत्तम जो है और जो परमात्मा अद्वितीय है वैसा कोई और नहीँ है। जिस परमात्मा में सप्त ऋषि अर्थात सात प्राण को प्राप्त होकर इच्छा से जीव आनंद को एवम सुख समृद्धि करने वाले कामों को सिद्ध करता है उसी ब्रह्म अर्थात परब्रह्म परमपिता विधाता विश्वकर्मा की सबको उपासना करनी चाहिये।
ये सभी उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध होता है कि भगवान विश्वकर्मा ही हमारे पिता अर्थात परमपिता है और विधाता भी वहीँ है।
6) क्या परमपिता, परब्रह्म, परमेश्वर, परमज्योति, विश्वनाथ, विश्वबह्मा, महादेव एवम विधाता निर्गुण का वेदों और पुराणों में कोई एक प्रसिद्ध नाम है जिसे हम एक नाम द्वारा पुकार सकते है ? क्या परब्रह्म की स्तुति के लिये कोई मंत्र भी है?
उत्तर - जी हाँ वेदों एवम पुराणों का एवम उपरोक्त सभी प्रमाणों का अवलोकन करें तो परमपिता, परब्रह्म, परमेश्वर,परमज्योति, विश्वदेवो, विश्वब्रह्मा, विश्वनाथ, विधाता और महादेव के लिये एक ही नाम का प्रयोग सभी वैदिक शास्त्रों में कई बार आया है जिसकी हम निर्विरोध रुप से स्तुति कर सकते है उस परमेश्वर का नाम " विश्वकर्मा " है।
विश्वकर्मा नाम ईश्वर के रूप में वेदों में प्रत्यक्ष रुप से 71 बार आया है और अप्रत्यक्ष रुप से अनगिनत बार आया है। विश्वकर्मा ही वेदों में विराट है वे ही वेद पुरुष है वे ही हिरण्यगर्भ और प्रजापति भी है। इन्हें ही वैदिक मंत्रों में "वेदहम एतं पुरुषम महानतम " बताया गया है । पुराणों में भी अनगिनत बार इन्ही विश्वकर्मा परमात्मा का नाम आया है। चाहे वो विष्णु पुराण हो , ब्रह्मा पुराण हो या शिव महापुराण हो। इन्ही त्रिदेवो के त्रिगुणात्मक रुप को ही विश्वनाथ अर्थात विश्वकर्मा कहते है।
विश्वकर्मा " शब्द की अगर व्याख्या करें तो वैदिक शास्त्रों में निम्न व्याख्या आती है ;
" यो विश्वं जगतं करोत्येसे स विश्वकर्मा "
अर्थ - जो समस्त संसार की रचना अर्थात निर्माण करता है ऐसे परमेश्वर को विश्वकर्मा कहते है।
परब्रह्म विश्वकर्मा के लिये वेदों में एक अष्टाक्षरि एक मंत्र आया है उसका नाम " ॐ नमो विश्वकर्मणे " है । वैदिक परब्रह्म की स्तुति के लिये वैदिक काल से गायत्री मंत्र जो हम सनातन वैदिक हिंदू धर्म के लोग जप करते आ रहे है उसका पूर्ण नाम " विश्वकर्मा गायत्री मंत्र " है जो पौराणिक कालों के आने के बाद और वैदिक ग्रंथों की उपेक्षा के चलते इसके मूल अधिष्ठान देवता जो विश्वकर्मा परब्रह्म है जिससे हम इस मंत्र के माध्यम से विश्वकर्मा के विशेषण के रुप में सूर्य को अंधकार दुर कर सत्य का मार्ग दिखाने के लिये प्रार्थना कर रहे है। यह मंत्र गायत्री छंद से लिया गया है परंतु इसके अधिष्ठान देवता विश्वकर्मा परब्रह्म है। जैसे कोई भी मंत्र सिर्फ गायत्री मंत्र नहीँ है बल्कि गायत्री छंद से लिये जाने के कारण इनके नामों में गायत्री भी जोड़ा जाता है जैसे रुद्र गायत्री , ब्रह्म गायत्री , दुर्गा गायत्री आदि । वैसे ही गायत्री मंत्र "ॐ भूर्भुवः स्वः ..." जो है उसके बारे में शास्त्रों में कहा गया है की " आदित्य अंतर्गते सावित्रीमन्डलमध्ये श्री विश्वकर्मा परमेश्वर: .. " अर्थात - आदित्य यानी सूर्य अन्तर्गत सावित्री मंडल ( गायत्री मंडल ) के मध्य में व्याप्त परब्रह्म परमेश्वर विश्वकर्मा ही है। जिसकी स्तुति ये मंत्र करता है जिसका मूल नाम " विश्वकर्मा गायत्री मंत्र " है ।
7)वेदों और पुराणों में वर्णित परब्रह्म विराट विश्वकर्मा और देवशिल्पी विश्वकर्मा के बीच लोगों को जो भ्रांतियां होती है इनमें क्या भिन्नता है ?
उत्तर - मित्रों एवम महानुभावों, उपरोक्त सभी प्रमाणों के माध्यम से ये सिद्ध कर दिया गया है कि वैदिक परब्रह्म विराट विश्वकर्मा है और उनके ही निर्माण के कार्यों को करने के कारण अनेक ऋषियो को विश्वकर्मा उपाधि मिली । जैसे - ब्रह्मर्षि अंगिरा विश्वकर्मा , ब्रह्मर्षि भुवन विश्वकर्मा , देवगुरु बृहस्पति विश्वकर्मा , देवपुरोहित विश्वरुप विश्वकर्मा वैसे ही एक देवों के शिल्पी है जिन्हें देवशिल्पी विश्वकर्मा कहते है। इन्होने अनेकों अनेकों निर्माण किये है इसलिये ये परब्रह्म विश्वकर्मा के समरुप ही माने जाते है। पौराणिक ग्रंथों में इनके अनेकों निर्माणों कि व्याख्या है जैसे कृष्ण की द्वारिकापूरी , रावण की लंकापूरी , इन्द्र के लिये इन्द्रपुरी , जगन्नाथपुरी , पांडवों के लिये इन्द्रप्रस्थ , सुदामा का महल , कुबेर के लिये स्वर्णिम लंका आदि बहुत से भवनों एवम महलों का इन्होने अद्भुत वैदिक शिल्पकला के माध्यम से निर्माण किया है। इनकी महिमा का गुणगान हर मनुष्यों के साथ साथ देवता लोग सतयुग से लेकर कलयुग में भी गाया जाता है।
उपरोक्त सभी प्रमाणों से ये सिद्ध हो गया है कि परब्रह्म विश्वकर्मा और देवशिल्पी विश्वकर्मा में भिन्नता है अर्थात दोनो का एक ही कर्म होने के कारण विश्वकर्मा है परंतु , एक देवशिल्पी विश्वकर्मा है और एक परब्रह्म विश्वकर्मा है जो सर्वव्यापी परमात्मा है जिनके एक संकल्पमात्र से सृष्टि का सृजन एवम प्रलय होता है। इन्ही ब्रह्म का गुणगान जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने करते हुये कहा था "ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या " अर्थात ब्रह्म या परब्रह्म ही सत्य है और समस्त चराचर जगत मिथ्या अर्थात माया है। परब्रह्म विश्वकर्मा किसी एक जाती के देवता नहीँ है अपितु , वे समस्त मनुष्यजाती , देवतागण एवम समस्त जीवजगत के साथ साथ सर्व ब्रह्माण्ड के परमेश्वर है। इसलिये हे मनुष्यों अपना अहंकार त्यागकर और वैदिक प्रमाणों को साक्षी मानकर सभी देवों के पूजन के पूर्व एक ही परब्रह्म परमेश्वर का पूजन करिये जो सभी जीवों के साथ साथ सृष्टि के कण कण में व्याप्त है जिसका सार्वभौमिक वैदिक और पौराणिक नाम " विश्वकर्मा " है।
ॐ नमो विश्वकर्मणे ..
ॐ विराट विश्वकर्मा परब्रह्मणे नम..
संकलनकर्ता एवम लेखकर्ता - संतोष आचार्य (विश्वकर्मा)
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